Bhagwan Ganesh:- ज्ञान के देवता गणेश जी ने भी लिए थे अवतार, गणेश जी की आरती के क्या-क्या है, लाभ आइए जानते हैं

Bhagwan Ganesh:- गणेश जी से जुड़ी कई कथाएं कही गईं। गणेश के अवतार और राक्षसों की कहानियों के माध्यम से दिया गया संदेश है कि हमें बुराइयों से बचना चाहिए। गणेश जी की पूजा करने से हमारे लोभ, मोह, निर्भरता जैसी बुराइयों को दूर किया जा सकता है। गणेश अंक ज्योतिष के अनुसार जानिए किस अवतार से गणेश जी ने किस राक्षस का वध किया था।

(Bhagwan Ganesh) भगवान गणेश का महोदर अवतार

मोहासुर नाम का एक दैत्य था, उसने देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। सभी देवताओं की सहायता के लिए गणेश जी ने महोदर का रूप धारण किया। महोदर यानी बड़े पेट वाले गणेश ने मोहासुर को हरा दिया था।  इस रूप का संदेश है कि हमें प्रलोभन यानी मोह से बचना चाहिए।

भगवान गणेश का वक्रतुंड अवतार

मत्सरासुर नाम का एक राक्षस था, वह भगवान शिव का परम भक्त भी था।  मत्सरासुर ने अपने पुत्रों सुंदरप्रिया और विषयप्रिया के साथ मिलकर देवताओं को हराया। इसके बाद भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार लिया और मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का वध कर दिया। गणेश जी के अवतार का संदेश यह था कि ईर्ष्या करना भी एक बहुत बड़ा दोष है। मत्सर का अर्थ होता है दूसरों की खुशी देखकर ईर्ष्या यानी कि किसी के सुख को देखकर अत्यंत जलना। हमें इस बुराई से बचना चाहिए।

भगवान गणेश का एकदंत अवतार

मद नाम एक राक्षस था जिसमें पूरी सृष्टि में आतंक मजा रखा था अतः सभी प्राणी, मनुष्य और देवता उसके आतंक से परेशान हो गए तो भगवान गणेश जी ने एकदंत रूप में अवतार लिया और मद नाम के राक्षस का अंत किया था। मद का अर्थ होता है नशा। मद नाम की इस बुराई से भी हमें हमेशा बचना चाहिए।

भगवान गणेश का विकट अवतार

भगवान गणेश के अवतारों में से एक विकट अवतार भी है जो गणेश जी ने कामासुर नाम के राक्षस का वध करने हेतु अवतार धारण किया था इस अवतार में गणेश जी मोर पर विराजमान है।

भगवान गणेश का गजानन अवतार

भगवान गणेश जी के अवतारों में से एक है गजानन अवतार इस अवतार मे गणेश जी ने लोभासुर नाम के राक्षस का वध किया था। लोभासुर का मतलब है लालच। इस बुराई से व्यक्ति कभी भी गलत काम करने में भी पीछे नहीं हटता है। अतः हमें इस बुराई से हमेशा बचना चाहिए।

भगवान गणेश का लंबोदर अवतार

क्रोधासुर नामक राक्षस को मारने के लिए गणेश जी ने लंबोदर के रूप में अवतार लिया था। क्रोधासुर का अर्थ है अत्यंत क्रोधी। गणेश की पूजा करके हम अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

भगवान गणेश का धूम्रवर्ण अवतार

अहंतासुर को मारने के लिए, गणेश ने धूम्रवर्ण का अवतार लिया। इस रूप में गणेशजी का स्वरूप यानी कि रंग रूप धुएँ के समान हो गया था, इसलिए इसे धूम्रवर्ण के नाम से जाना जाने लगा। अहंतासुर यानी अहंकार का अंत करने करने हे हेतु हमें गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।

गणेश आरती पूरी विधि अनुसार करने से मिलता है गणेश जी का आशीर्वाद

भगवान गणेश हिंदू धर्म में सबसे प्रसिद्ध देवताओं में से एक हैं। गणेश को गणपति और विनायक भी कहा जाता है। श्री गणेश भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और भगवान कार्तिकेय के भाई हैं।

शिव पुराण के अनुसार भगवान गणेश के दो पुत्र हैं। शुभ और लाभ। भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि, समृद्धि और धन दौलत में वृद्धि होती है। भगवान गणेश प्रत्येक को आसानी से सफल बनाते हैं, भगवान गणेश हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने हेतु सर्वप्रथम पूजने वाले भगवान है।

बुद्धि के देवता भगवान गणेश की पूजा करने से दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि आती है और घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। उन विशिष्ट तिथियों और त्योहारों के अलावा प्रत्येक बुधवार को गणेश जी की पूजा और आरती करनी होती है। ऐसा करने से गणेश जी शीघ्र प्रसन्न होंगे।

गणेश जी की आरती विधि

भगवान गणेश जी की आरती को शुरू करने से पहले तीन बार शंख जरूर बजाएं। शंख बजाते समय मुंह को ऊपर की ओर रखें। शंख को मंद स्वर में फूंकना शुरू करें और इसे नियमित रूप से बढ़ाएं। इसके बाद आरती शुरू करें। आरती दिखाते हुए ताली बजाएं।

घंटी को एक लय में बजाएं और स्वर और लय को ध्यान में रखते हुए आरती गाएं। इसके साथ ही मजीरा, तबला, आदि वाद्य यंत्र बजाएं। आरती करते हुए गीत का स्वाभाविक उच्चारण करें। आरती के लिए प्राकृतिक रूई यानी रुई से बनी घी की बत्ती होनी चाहिए। तेल के दीये के प्रयोग से बचें। कपूर आरती भी की जाती है। प्रकाश की बत्तियां औ एक, पांच, नौ, 11 या 21 हो सकती है।

गणेश भगवान की आरती से पहले यह मंत्र बोलें –

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

अर्थ – हे गणेश भगवान जी! आप महाकाय हैं। आपकी सूंड वक्र है। आपके शरीर से करोड़ों सूर्यो का तेज निकलता है। आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे सारे कार्य निर्विध्न यानी आसानी से पूरे करें।

श्री गणेश आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी

माथे (मस्तक) पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।

(माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी)

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा

(हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा)

लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अंधे को आँख देत कोढ़िन को काया

बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।

‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

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